सोमवार, 15 नवंबर 2021

कर्नाटक के इ आदिवासी महिला कैसे बन गेलथिन किसान सब के रोल मॉडल?


अगर इ पढ़ल लिखल रहथिन हल त इ सोशल मीडिया पर जरूर रहथिन हल औ  इनकर  पहचान एगो  'इंफ्लुएंसर' यानी प्रभावित करेवाला एक  व्यक्ति के रहते हल। लेकिन उनका पास कुछ अइसन कुशलता हई  कि उनका कृषि और आदिवासी कल्याण के ब्रांड एंबैस्डर तो बनावल जा हीं सक्ले हे। 

तेरह साल पहिले तक प्रेमा दासप्पा (50) जंगल में  रहहलथिन आउ बहुत कम पैसा पर मज़दूरी कर हलथिन। 

अब उ दूसर आदिवासी महिला सब के सिखा रहलथिन हें कि अपना आर्थिक सशक्तीकरण कैसे करल जाये( जादे पैसा कैसे कमावल जाये )। 

मैसूर ज़िला के एचडी कोटा से बीबीसी से बतिययिते घड़ी दासप्पा बतइलथिन पहले साल उ एक एकड़ जमीन पर चिया के बीज़ रोपलथीन हल  जेकरा बेच के  उ 90 हज़ार रुपया के  कमाई कइलथिन हल।  इ बिच्चा  उ 18 हज़ार रूपइये  क्विंटल बेचलथिन  हल। इ कमाई से उ अपन बेटा के  मोटरसाइकिल ख़रीद के देलथिन हल। 

प्रेमा जेनू कुरुबा आदिवासी समुदाय के उ 60 आदिवासी परिवार में शामिल हलथिन जे साल 2007-08 में नागरहोल टाइगर रिज़र्व के जंगल से बाहर निकले  के बदले तीन एकड़ भूमि के मुआवज़ा स्वीकार करलथिन हल। 

जेकरा में  से 15 परिवार अभी भी वन विभाग ला  मज़दूरी कर हथीन जबकि पैंतालीस दूसर परिवार सब ज़मीन के  इस्तेमाल सिर्फ़ रहेला कलथिन। केवल  प्रेमा  कुछ अलग करे ला सोचलथिन। 



इ समझे ला कि इ ज़मीन के  कैसे बढियाँ से इस्तेमाल में लआवल जाये, प्रेमा कईक जगह गेलथिन आउ उ अपन पति के साथ मिलके इहाँ खेतीबाड़ी शुरू कइलथिन।  उ चावल, ज्वार, मक्का और सब्ज़ि उगैलथिन। 

उनकर  ज़िंदगी में बदलाव पिछले दशक के अंतिम साल में अइलइ। 

प्रेमा बताव हथीन, हमनी अपन ज़मीन केरल के एक व्यक्ति के  ठेका  पर देली  हल जे दरक के खेती करेला  चाह  हलइ।  हमनी ओकरा से पैसा के बदले  कुवां खोदावेला कहलियई । 

जौन इलाक़ा  में आदिवासिय सब के  ज़मीन देल गेले हल , वहां सिंचाई के कोई व्यवस्था न हलइ। 


प्रेमा कह हथीन , "सभ बारिश पर निर्भर हलइ। इ ज़मीन इतना सुखल हई कि लोग यहां खेती करे के बजाए दूसर जगह जाके मज़दूरी करना पसंद कर हथीन।  इहां खेती में लगावल लागत के भी नुकसान होवे के ख़तरा रह हई। "

लेकिन प्रेमा के अलग नज़रिआ  आउ सीखे  के  ललक उनका बहुत फ़ायदा पहुंचैलकइ । 


कर्नाटक सरकार के वन विभाग के साथ मिलके लोग के पुनर्वास के लिए काम करे  वाली संस्था द वाइल्डलाइफ़ कंज़रवेशन सोसायटी (डब्ल्यूएलएस) भी उनकर  क्षमता के पहचानालकै। 

डब्ल्यूएलएस  ला काम करेवाला गोविंदप्पा बीबीसी के बतइलथिन , "हमनी उनकर ज़मीन पर एक पॉली हाउस लगैलियै  जहां उ हर तीन महीना में कई तरह के फलि, टमाटर, रागी और केला  अगावा हथीन।  हमनी  खाली बीज दे हीयै आउ फ़सल किसान के होवा हई। "

पॉली हाउस ग्रीन हाउस जैसन ही होव हई  लेकिन इ पॉलीथीन के बनल रहा हई आउ एकरा में सूर्य के  रोशनी किनारवा से भीतरी  जा हई। 

प्रेमा के सीखे के ललक आउ  वन विभाग आउ  डब्ल्यूएलएस के तरफ़ से देवल गेल मौका के फ़ायदा उठावे  के  कोशिश अब उनका बहुत फ़ायदा पहुँचलिके ह। 

अब उ  सुपरफूड माने जायेवाला चिया बीज उगाव हथीन आउ ओकरा महंगा दाम में बेच हथीन। 

उ हंसते हुए कह हथीन , हम दूसर किसानन  के भी चिया उगावेला बीज बेच हिओ। अब हम आधा किलो बीज ढाई सौ रुपया में दे देही। 


उ ख़ुश होके कह हथीन कि अब वन विभाग उनका दूसर  जगह पर लेके  जा हाई  जहाँ  उ  किसानन के सलाह दे हथीन। 

प्रेमा हर दूसरा -तीसरा  महीना में औसतन 50-60 हज़ार रुपया कमा ले हथीन। 

प्रेमा के दो बच्चा  हई  औ दुनु  के शादी हो चुकले ह।  उ गर्व के भाव से बतावा हथीन कि उनकर  पोती एगो  अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में पढ़ रहले ह। 

दो दिन पहिले वन विभाग उनका से  कृषि मेला  के  उद्घाटन करेला अपील कइलकइ . इ मेला  के  उद्घाटन मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई करेवाला हलथिन लेकिन  मुख्यमंत्री उ दिन दिल्ली में हलथिन। 


(आभार इमरान क़ुरैशी, बीबीसी हिंदी )


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